रविवार, 8 नवंबर 2009

बहुत बहुत पहले

पहले
बहुत बहुत पहले
ईश्वर नहीं था

नहीं थे पाप और पुन्य
मोक्ष और परलोक भी नहीं था
ईश्वर का डर भी
नहीं था बहुत बहुत पहले
पहले
बहुत बहुत पहले
पेड़ नदियाँ सूरज चाँद और तारे थे
छिपकली और गोरैया थी
बहुत पहले
पहले
बहुत बहुत पहले
ईश्वर नहीं था
कल्पना कामना और जिज्ञासा थी
बहुत बहुत पहले



गुरुवार, 3 सितंबर 2009

मैं

मैं हूँ
इसलिए कि मैं नहीं था
मैं नहीं रहूँगा
क्योंकि मैं हूँ
तुम तो ऐसे पेश आते हो
जैसे हमेशा से थे
जैसे
हमेशा रहने वाले हो

बुधवार, 10 जून 2009

वह आदमी

मेरे पड़ोस में एक आदमी है

जिसकी आँखे देखती कम, नज़रंदाज़ ज्यादा करती हैं
किताब और रोशनाई की गंध उसके लिए बदबू है
मैनें उसे कभी किसी छोटे बच्चे को देखकर
खुश होते नहीं देखा

वह अक्सर कहते मिलता है -
सरकार ने दलितों को सर पर बिठा रखा है
बिहारियों ने रेलों की दुर्गति कर दी है
औरतें पांव की जूती बनाकर रखने में ही खुश रहती हैं
पाकिस्तान को सबक सिखाना जरूरी है

सामानों से ठसाठस भरा है उसका घर
किताबों के लिए जरा भी जगह नहीं है वहां

मेरी गली में , शहर में और पड़ोस के शहर में
इसके जैसे लोगों की संख्या
लगातार बढती जा रही है

मैं

धरती
मुझे गोद मैं उठाकर

गुलाबी ठण्ड से नहलाती है
फुहारों से भिगाती है

धरती
मुझे गोद मैं लेकर
सूरज के चक्कर लगाती है

सोमवार, 1 जून 2009

लौटना

कई बार मैं लौटना चाहता हूँ
अपने बचपन की गलियों में
पुराने दोस्तों के बीच
जो अब भी नए और ताजा हैं मेरे लिए

मैं
लौटना चाहता हूँ
जैसे
खेल से थका बच्चा
लौट आता है मां की गोद में
जैसे
प्रजनन के बाद
लौट आती हैं मछलियाँ अपनी पुरानी जगह पर
जैसे
पूरे बरस को फलांगते हुए
लौट आती है जनवरी
पर कैसे लौटूंगा मैं
क्या
मैं अब भी वही हूँ जो बरसों पहले
चला आया था अचानक यहाँ
क्या
किसी के मन में
खाली
होगी अब तक
मेरे जितनी जगह
मैं
लौटना चाहता हूँ
पर कैसे
ऐसे जैसे कभी गया ही नहीं था
या
ऐसे जैसे अनजान लोग
चले
आते हैं परदेश में
लोगों के बीच अपनी जगह तलाशते हुए

चंदन यादव