पहले
बहुत बहुत पहले
ईश्वर नहीं था
नहीं थे पाप और पुन्य
मोक्ष और परलोक भी नहीं था
ईश्वर का डर भी
नहीं था बहुत बहुत पहले
पहले
बहुत बहुत पहले
पेड़ नदियाँ सूरज चाँद और तारे थे
छिपकली और गोरैया थी
बहुत पहले
पहले
बहुत बहुत पहले
ईश्वर नहीं था
कल्पना कामना और जिज्ञासा थी
बहुत बहुत पहले
रविवार, 8 नवंबर 2009
गुरुवार, 3 सितंबर 2009
मैं
मैं हूँ
इसलिए कि मैं नहीं था
मैं नहीं रहूँगा
क्योंकि मैं हूँ
तुम तो ऐसे पेश आते हो
जैसे हमेशा से थे
जैसे
हमेशा रहने वाले हो
इसलिए कि मैं नहीं था
मैं नहीं रहूँगा
क्योंकि मैं हूँ
तुम तो ऐसे पेश आते हो
जैसे हमेशा से थे
जैसे
हमेशा रहने वाले हो
बुधवार, 10 जून 2009
वह आदमी
मेरे पड़ोस में एक आदमी है
जिसकी आँखे देखती कम, नज़रंदाज़ ज्यादा करती हैं
किताब और रोशनाई की गंध उसके लिए बदबू है
मैनें उसे कभी किसी छोटे बच्चे को देखकर
खुश होते नहीं देखा
वह अक्सर कहते मिलता है -
सरकार ने दलितों को सर पर बिठा रखा है
बिहारियों ने रेलों की दुर्गति कर दी है
औरतें पांव की जूती बनाकर रखने में ही खुश रहती हैं
पाकिस्तान को सबक सिखाना जरूरी है
सामानों से ठसाठस भरा है उसका घर
किताबों के लिए जरा भी जगह नहीं है वहां
मेरी गली में , शहर में और पड़ोस के शहर में
इसके जैसे लोगों की संख्या
लगातार बढती जा रही है
जिसकी आँखे देखती कम, नज़रंदाज़ ज्यादा करती हैं
किताब और रोशनाई की गंध उसके लिए बदबू है
मैनें उसे कभी किसी छोटे बच्चे को देखकर
खुश होते नहीं देखा
वह अक्सर कहते मिलता है -
सरकार ने दलितों को सर पर बिठा रखा है
बिहारियों ने रेलों की दुर्गति कर दी है
औरतें पांव की जूती बनाकर रखने में ही खुश रहती हैं
पाकिस्तान को सबक सिखाना जरूरी है
सामानों से ठसाठस भरा है उसका घर
किताबों के लिए जरा भी जगह नहीं है वहां
मेरी गली में , शहर में और पड़ोस के शहर में
इसके जैसे लोगों की संख्या
लगातार बढती जा रही है
मैं
धरती
मुझे गोद मैं उठाकर
गुलाबी ठण्ड से नहलाती है
फुहारों से भिगाती है
धरती
मुझे गोद मैं लेकर
सूरज के चक्कर लगाती है
मुझे गोद मैं उठाकर
गुलाबी ठण्ड से नहलाती है
फुहारों से भिगाती है
धरती
मुझे गोद मैं लेकर
सूरज के चक्कर लगाती है
सोमवार, 1 जून 2009
लौटना
कई बार मैं लौटना चाहता हूँ
अपने बचपन की गलियों में
पुराने दोस्तों के बीच
जो अब भी नए और ताजा हैं मेरे लिए
मैं लौटना चाहता हूँ
जैसे खेल से थका बच्चा
लौट आता है मां की गोद में
जैसे प्रजनन के बाद
लौट आती हैं मछलियाँ अपनी पुरानी जगह पर
जैसे पूरे बरस को फलांगते हुए
लौट आती है जनवरी
पर कैसे लौटूंगा मैं
क्या मैं अब भी वही हूँ जो बरसों पहले
चला आया था अचानक यहाँ
क्या किसी के मन में
खाली होगी अब तक
मेरे जितनी जगह
मैं लौटना चाहता हूँ
या ऐसे जैसे अनजान लोग
चले आते हैं परदेश में
लोगों के बीच अपनी जगह तलाशते हुए
चंदन यादव
अपने बचपन की गलियों में
पुराने दोस्तों के बीच
जो अब भी नए और ताजा हैं मेरे लिए
मैं लौटना चाहता हूँ
जैसे खेल से थका बच्चा
लौट आता है मां की गोद में
जैसे प्रजनन के बाद
लौट आती हैं मछलियाँ अपनी पुरानी जगह पर
जैसे पूरे बरस को फलांगते हुए
लौट आती है जनवरी
पर कैसे लौटूंगा मैं
क्या मैं अब भी वही हूँ जो बरसों पहले
चला आया था अचानक यहाँ
क्या किसी के मन में
खाली होगी अब तक
मेरे जितनी जगह
मैं लौटना चाहता हूँ
पर कैसे
ऐसे जैसे कभी गया ही नहीं था या ऐसे जैसे अनजान लोग
चले आते हैं परदेश में
लोगों के बीच अपनी जगह तलाशते हुए
चंदन यादव
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