सोमवार, 1 जून 2009

लौटना

कई बार मैं लौटना चाहता हूँ
अपने बचपन की गलियों में
पुराने दोस्तों के बीच
जो अब भी नए और ताजा हैं मेरे लिए

मैं
लौटना चाहता हूँ
जैसे
खेल से थका बच्चा
लौट आता है मां की गोद में
जैसे
प्रजनन के बाद
लौट आती हैं मछलियाँ अपनी पुरानी जगह पर
जैसे
पूरे बरस को फलांगते हुए
लौट आती है जनवरी
पर कैसे लौटूंगा मैं
क्या
मैं अब भी वही हूँ जो बरसों पहले
चला आया था अचानक यहाँ
क्या
किसी के मन में
खाली
होगी अब तक
मेरे जितनी जगह
मैं
लौटना चाहता हूँ
पर कैसे
ऐसे जैसे कभी गया ही नहीं था
या
ऐसे जैसे अनजान लोग
चले
आते हैं परदेश में
लोगों के बीच अपनी जगह तलाशते हुए

चंदन यादव

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