बुधवार, 10 जून 2009

वह आदमी

मेरे पड़ोस में एक आदमी है

जिसकी आँखे देखती कम, नज़रंदाज़ ज्यादा करती हैं
किताब और रोशनाई की गंध उसके लिए बदबू है
मैनें उसे कभी किसी छोटे बच्चे को देखकर
खुश होते नहीं देखा

वह अक्सर कहते मिलता है -
सरकार ने दलितों को सर पर बिठा रखा है
बिहारियों ने रेलों की दुर्गति कर दी है
औरतें पांव की जूती बनाकर रखने में ही खुश रहती हैं
पाकिस्तान को सबक सिखाना जरूरी है

सामानों से ठसाठस भरा है उसका घर
किताबों के लिए जरा भी जगह नहीं है वहां

मेरी गली में , शहर में और पड़ोस के शहर में
इसके जैसे लोगों की संख्या
लगातार बढती जा रही है

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